नीचे दी गई पंक्तियों को ध्यान से पढि़ए

ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी,


तब समझ’ ने यों मुझे ताने दिए।


इन पंक्तियों में ‘ऐंठ’ और ‘समझ’ शब्दों का प्रयोग सजीव प्राणी की भांति हुआ है। कल्पना कीजिए, यदि ‘ऐंठ’ और ‘समझ’ किसी नाटक में दो पात्र होते तो उनका अभिनय कैसा होता?


(दृश्य)- एक मनुष्य घमंड से भरा हुआ खड़ा है। उसे देखकर ऐसा लग रहा है कि दुनिया भर की सारी ऐठ उसी के अंदर है। तभी ऐंठ (घमंड) बाहर आती है। वह मनुष्य के सामने आकर खड़ी हो जाती है, और उसका हाल-चाल लेती है।

ऐंठ (मनुष्य से)- कैसे हो तुम? कुछ भी हो जाए बस तुम मेरा साथ मत छोड़ना।


मनुष्य- तुम ऐसा क्यों सोचती हो, तुम हो तो लोग मुझसे डरे रहते है।


ऐंठ- फिर तो ठीक है।


मनुष्य- तभी मनुष्य की आंख में कुछ पड़ जाता है। मनुष्य को ऐसी हालत में देख ऐंठ वहां से भाग जाती है।


ऐंठ- तुम अब अपना देखो। मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकती।


मनुष्य- मुसीबत में छोड़कर जा रही हो।


ऐंठ- जहां मुसीबत होती है वहां ऐंठ एक पल भी नहीं रुकती।


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